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Tukdoji Maharaj's Gramgita आइकन

1.6 by Piyush Chaudhari


Nov 21, 2023

Tukdoji Maharaj's Gramgita के बारे में

English

जनसेवा हीच ईशसेवा माननारे तुकडोजी महाराज हे समाजसु डीलर संत होते हैं।

तुकडोजी महाराज की ग्रामगीत:

राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराचन ​​जन्म २प्र एप्रिल १ ९ ० ९ साली झाला। बचंचे मूळ बणिक मािक बंडोजी इंग होे होय।त्यात्मना गुरूमत्र आडकोजी कुरन्नी रहना। दिसंनी ग्रामगीता, अनुभव सागर भजावली, सेवास्वधर्म, राष्ट्रीय भजनावली इ। ग्रंथ रांची रचना केली। जैसीं आपले आयुषी जातिभेद निर्मूलन, अंधश्रद्धा निर्मूलन यावर खर्ची वापसी। तुकडोजी कुरंनी १ ९ ३५ साली मझारी येथे गुरुकुंज आश्रमाची स्थापना केली। खन्नाजिरी भजन हे लिंच्या प्रबोधनाचे वैशिष्ट्य होते हैं। जनसेवा हीच ईशसेवा माननारे तुकडोजी महाराज हे समाजसु डीलर संत होते हैं। उतरंच्या अंतरंगात वास करत असलेली तळमगी ग्रामगीतेतून शब्दरूप होउँ मशर पडली आहे। भारतीय नवरचनेच्या संधीकाळत महाराणनी ही ग्रामगीता जनतेच्य हाती देउन ग्रामसु स्वाभावच्या कामालात्मक दिशा दिली आहे। १ ९ ५५ साली ग्रामगीतेची पहिली आवृत्ती प्रसिद्ध झाली। या किताबकाला एकदोन नाही, तब्बल नऊ प्रस्तावना आहेत। शिवाय तुकडोजी महाराचन्या चरित्राचे अकरा खंड लिहिआना - या सुदाम सावरकांणी कुरचन्या कामाची चार पानत करूँ दिलेली ओळख आहे। प्रस्तावना लिहिना - यांत विनोबा, गाडगेमहाराज, मामासाहेब सोनोपंत दांडेकर, दादा धर्माधिकारी, श्रीपाद सातवळेकर अशा अध्यात्माच्या क्षेत्रतिलल दिसकाळतली आलत टोपची मंडळी आहेत। तर वि। स। खांडेकर, वि। राय कोलते आनि गा। त्रैण। माडखोलकर अशी साहितिकली दादा माणसही आहेत। शिवाय तेव्हच्या मध्य प्रांत राज्याचे समाजकल्याण मंत्री दीनदयाल गुप्त ओरन्ही लिहिल आहे।

राष्ट्रसंत तुकडोज़ा महाराज रांची "ग्रामगीता 'म्हणजे दिसंच्या मनात घर करूँ रहेशल्या गावाचे आणि ग्रामसंस्कृतीचे नितळ रूप होये। तुकदोजी महाराज गवाक्षवाच्य सेवेसाथी आयुष्यन्ति भक्तत राहु। अव्यनी खद्यपद्याच्युत चोदितम्।

ग्रामोन्नतीच्या तळमळीतुन प्रकटले आर्त उद्घोष म्हणजे ग्रामगीता होय। तुकडोजी महाराज म्हनायचे, "माझा देव साधनारूपणे देव वात वा वनात असला, चिंतन लेन तो मनात वातनात असला तरीके कार्यरूपणे तो जनात आहे। विस्तारीपन लोकनाथ पसारलेली गावे, हीच माझी दैवते आहेत। ग्रामसेवा हील देवी की पूजा करते हैं।

राष्ट्रसंत तुकडोजी करणनी ही ग्रामगीता ग्रामदेवतेलाच अर्पण केली आहे। हा गाव सुखी व्हावा। सर्वार्थसिद्धिं वाष्प। परस्परांचा स्नेह जव्वा। जींचे हत श्रमांसाथी पुढे सरसावले आहेत, लिंच्या श्रमणना प्रतिष्ठा मि मानववि, मृत्युतेचे तेज झळाेावे, या आर्त तळमळीने दिसंनी हीं अरगीता अर्पण करूँ ग्रामिणत विप्लिहे पूर्णविनाशं जनमिदं गतं गतं गतं गच्छामि गच्छामि।

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